भगवान बुद्ध और उनका धम्म आत्मशुद्धि से सामाजिक जागरूकता तक भूमिका भगवान बुद्ध की शिक्षाएँ केवल आत्मज्ञान या ध्यान-साधना तक सीमित नहीं थीं। उनका धम्म (धर्म) एक ऐसी जीवन पद्धति है जो व्यक्ति को आत्मिक शुद्धि के साथ-साथ सामाजिक जिम्मेदारी की ओर भी प्रेरित करता है। बुद्ध ने कभी अंधविश्वास, रहस्यवाद या परंपरा के आधार पर सत्य को स्वीकारने की बात नहीं कही। उनका आग्रह था कि हर बात को अनुभव, परीक्षण और तर्क की कसौटी पर कसा जाए। धम्म का सही अर्थ धम्म कोई रहस्य या केवल गूढ़ साधना नहीं है, बल्कि एक व्यावहारिक और सार्वभौमिक जीवन पद्धति है। कुछ लोग बुद्ध के धम्म को केवल समाधि और ध्यान से जोड़ते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि धम्म को कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में अनुभव कर सकता है। बुद्ध ने धम्म को तीन स्तरों में समझाया: अधम्म (Not-Dhamma) – हिंसा, झूठ, वासना, द्वेष जैसे नकारात्मक कर्म। धम्म (Shuddh Dhamma) – नैतिक आचरण और शुद्ध जीवन। सद्धम्म (Saddhamma) – परिपक्व, जागरूक और निर्मल जीवन शैली। तीन प्रकार की पवित्रताएँ जीवन को पवित्र और निर्मल बनाने के लिए बुद्ध ने तीन प्रमु...
भारत का धार्मिक इतिहास: वैदिक साधना से ब्राह्मणवाद तक, फिर बुद्ध और नवयान की क्रांति जब वैदिक धर्म सत्ता और कर्मकांडों का गुलाम बन गया प्रारंभिक वैदिक काल (1500 ईसा पूर्व – 1000 ईसा पूर्व) में धर्म एक उदार, लचीला और ज्ञान-प्रधान मार्ग था। उस समय प्राकृतिक शक्तियों की पूजा की जाती थी। मूर्तिपूजा या जटिल कर्मकांड प्रचलित नहीं थे। जातियाँ जन्म आधारित नहीं थीं। स्त्रियाँ और शूद्र वेद पढ़ सकते थे और विदुषियों को समाज में सम्मान प्राप्त था। धर्म भय पर आधारित नहीं था, बल्कि आत्मज्ञान का साधन माना जाता था। उत्तरवैदिक काल (1000 ईसा पूर्व – 600 ईसा पूर्व) में स्थिति बदलने लगी। ब्राह्मणों ने वेदों की व्याख्या पर अपना एकाधिकार जमा लिया। कर्मकांड और यज्ञ इतने जटिल और महंगे हो गए कि आम जनता के लिए धर्म का पालन असंभव हो गया। जातियाँ जन्म आधारित कर दी गईं और स्त्रियों व शूद्रों को वेद अध्ययन से वंचित कर दिया गया। धर्म अब ज्ञान की खोज से हटकर दंड और भय से नियंत्रित होने लगा। राजा भी धीरे-धीरे ब्राह्मणों के अधीन हो गए। जब ब्राह्मणों ने विशेष धार्मिक कानून बनाए ऋग्वेद के पुरुष सूक्त (10....