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भगवान बुद्ध और उनका धम्म आत्मशुद्धि से सामाजिक जागरूकता तक

  भगवान बुद्ध और उनका धम्म आत्मशुद्धि से सामाजिक जागरूकता तक भूमिका भगवान बुद्ध की शिक्षाएँ केवल आत्मज्ञान या ध्यान-साधना तक सीमित नहीं थीं। उनका धम्म (धर्म) एक ऐसी जीवन पद्धति है जो व्यक्ति को आत्मिक शुद्धि के साथ-साथ सामाजिक जिम्मेदारी की ओर भी प्रेरित करता है। बुद्ध ने कभी अंधविश्वास, रहस्यवाद या परंपरा के आधार पर सत्य को स्वीकारने की बात नहीं कही। उनका आग्रह था कि हर बात को अनुभव, परीक्षण और तर्क की कसौटी पर कसा जाए। धम्म का सही अर्थ धम्म कोई रहस्य या केवल गूढ़ साधना नहीं है, बल्कि एक व्यावहारिक और सार्वभौमिक जीवन पद्धति है। कुछ लोग बुद्ध के धम्म को केवल समाधि और ध्यान से जोड़ते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि धम्म को कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में अनुभव कर सकता है। बुद्ध ने धम्म को तीन स्तरों में समझाया: अधम्म (Not-Dhamma) – हिंसा, झूठ, वासना, द्वेष जैसे नकारात्मक कर्म। धम्म (Shuddh Dhamma) – नैतिक आचरण और शुद्ध जीवन। सद्धम्म (Saddhamma) – परिपक्व, जागरूक और निर्मल जीवन शैली। तीन प्रकार की पवित्रताएँ जीवन को पवित्र और निर्मल बनाने के लिए बुद्ध ने तीन प्रमु...

About Me

 

🙏 मेरे बारे में | About Me

मैं कोई विद्वान नहीं हूँ, ना ही कोई प्रचारक या उपदेशक। मैं तो बस एक साधक हूँ — एक ऐसा पथिक, जो जीवन के वास्तविक अर्थ को खोजने की यात्रा पर है। यह यात्रा बचपन से ही प्रारंभ हो गई थी, जब मैंने अपने माता-पिता को ईश्वर के प्रति श्रद्धा और सरल जीवन में विश्वास करते हुए देखा।

मेरे माता-पिता स्वयं धर्मपरायण थे। घर का वातावरण सादा, शांत और संस्कारपूर्ण था। मैंने पहली बार धर्म का बीज अपने माता-पिता से ही पाया — वही मेरे पहले गुरु बने। बाल्यकाल से ही मंदिरों की घंटियाँ, आरती की ध्वनि, और धर्मग्रंथों के वाचन से मन में कुछ सवाल उठते थे — “हम कौन हैं? इस जीवन का क्या उद्देश्य है? मृत्यु के बाद क्या होता है?” यही प्रश्न मेरे अंदर की यात्रा का आधार बने।

समय के साथ मैं अनेक संतों, गुरुओं और अध्यात्म में रमे व्यक्तियों के संपर्क में आया। उनमें से कई ने सीधे कुछ नहीं कहा, लेकिन उनका मौन, उनकी दृष्टि, उनकी मुस्कान — इन सबसे आत्मा को बहुत कुछ कह जाने वाला अनुभव होता रहा।

🌼 बुद्ध की करुणा से जुड़ाव

जीवन के एक मोड़ पर मुझे भगवान गौतम बुद्ध की शिक्षाओं से गहराई से जुड़ने का अवसर मिला। वह दिन आज भी स्मृति में ताज़ा है — जब पहली बार धम्मपद की एक पंक्ति ने जैसे मन को चीरते हुए झकझोर दिया:

“मन ही सब कुछ है। जो तुम सोचते हो, वही तुम बनते हो।”

उस दिन से लेकर आज तक, बुद्ध की करुणा, उनकी तटस्थ दृष्टि, और उनके द्वारा बताए गए अष्टांगिक मार्ग ने मुझे एक नई दिशा दी। ध्यान-साधना मेरे जीवन का केंद्र बन गई। हर दिन कुछ देर एकांत में बैठकर मैं अपने ही भीतर उतरता हूँ, और वहाँ जो शांति मिलती है, वह किसी भी बाहरी सुख से परे है।

📖 ग्रंथों से मित्रता

मैंने अनेक धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथों का अध्ययन किया — धम्मपद, जटकों की कथाएँ, उपनिषद, भगवद गीता, और कई संत साहित्य जैसे कबीर, रैदास, तुलसी आदि के विचार। इन सबमें एक ही बात बार-बार सामने आती रही — आत्मा को जानो, मन को शुद्ध करो, और करुणा का अभ्यास करो।

यह ब्लॉग मेरी उसी यात्रा का विस्तार है।


✍️ इस ब्लॉग के बारे में

इस ब्लॉग पर मैं वही लिखता हूँ जो मैंने अनुभव किया है, जो मैंने ध्यान में जाना है, और जो मैंने ग्रंथों में पढ़ा है। मेरा उद्देश्य न तो किसी को प्रभावित करना है, न ही कोई अनुयायी बनाना — बल्कि केवल इतना कि यदि मेरी यह लेखनी किसी एक व्यक्ति को भी अपनी आत्मा की ओर लौटने की प्रेरणा दे सके, तो यह लेखन सार्थक हो जाएगा।

यह ब्लॉग एक दर्पण है — जो आपको अपने भीतर झाँकने का निमंत्रण देता है।


🌱 आपसे विनम्र निवेदन

यदि आप भी ध्यान, आत्मचिंतन, पुनर्जन्म, कर्म, मुक्ति और बौद्ध धर्म की मूल शिक्षाओं में रुचि रखते हैं, तो इस यात्रा में आप मेरे सहयात्री बन सकते हैं। आप चाहें तो कमेंट्स या ईमेल के माध्यम से अपने अनुभव भी साझा कर सकते हैं। मैं स्वयं भी एक शिष्य हूँ — और हर पाठक से कुछ न कुछ सीखने का मन हमेशा बना रहता है।

🙏 बुद्धं शरणं गच्छामि
🙏 धम्मं शरणं गच्छामि
🙏 संघं शरणं गच्छामि

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