Skip to main content

Featured Post

नैमिषारण्य तीर्थ का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व और धर्मचक्र का वास्तविक अर्थ

  नैमिषारण्य तीर्थ का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व और धर्मचक्र का वास्तविक अर्थ प्रस्तावना नैमिषारण्य (चक्र तीर्थ) उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले में स्थित एक प्राचीन तीर्थ है। ऋषियों की तपोभूमि, ज्ञान एवं साधना का केंद्र, और बहुधार्मिक परंपराओं—हिंदू, बौद्ध, जैन—में किसी न किसी रूप में इसका उल्लेख मिलता है। प्रश्न यह है कि क्या यह केवल आस्था का स्थल है, या इसके पीछे कोई गहन दार्शनिक संकेत भी निहित है? “नैमिषारण्य” को तीन भागों में समझा जा सकता है—‘नै’ (क्षण/क्षणिक), ‘मिष’ (दृष्टि), ‘अरण्य’ (वन)। भावार्थ है—ऐसा वन जहाँ क्षणभर में आत्मदृष्टि या आत्मबोध संभव हो। प्राचीन ग्रंथों में नैमिषारण्य ऋग्वेद, रामायण, महाभारत और अनेकों पुराणों में इस क्षेत्र का विस्तार से वर्णन है। महाभारत परंपरा में इसे वह स्थान माना गया जहाँ वेदव्यास ने पुराणकथा-वाचन की परंपरा को स्थिर किया। पांडवों के वनवास प्रसंगों में यहाँ ध्यान-तप का उल्लेख मिलता है। रामायण में शत्रुघ्न द्वारा लवणासुर-वध और इसके धार्मिक केंद्र के रूप में प्रतिष्ठा का वर्णन है। स्कन्द पुराण इसे “तीर्थराज” कहता है; शिव पुराण में शिव-प...

About Me

 

🙏 मेरे बारे में | About Me

मैं कोई विद्वान नहीं हूँ, ना ही कोई प्रचारक या उपदेशक। मैं तो बस एक साधक हूँ — एक ऐसा पथिक, जो जीवन के वास्तविक अर्थ को खोजने की यात्रा पर है। यह यात्रा बचपन से ही प्रारंभ हो गई थी, जब मैंने अपने माता-पिता को ईश्वर के प्रति श्रद्धा और सरल जीवन में विश्वास करते हुए देखा।

मेरे माता-पिता स्वयं धर्मपरायण थे। घर का वातावरण सादा, शांत और संस्कारपूर्ण था। मैंने पहली बार धर्म का बीज अपने माता-पिता से ही पाया — वही मेरे पहले गुरु बने। बाल्यकाल से ही मंदिरों की घंटियाँ, आरती की ध्वनि, और धर्मग्रंथों के वाचन से मन में कुछ सवाल उठते थे — “हम कौन हैं? इस जीवन का क्या उद्देश्य है? मृत्यु के बाद क्या होता है?” यही प्रश्न मेरे अंदर की यात्रा का आधार बने।

समय के साथ मैं अनेक संतों, गुरुओं और अध्यात्म में रमे व्यक्तियों के संपर्क में आया। उनमें से कई ने सीधे कुछ नहीं कहा, लेकिन उनका मौन, उनकी दृष्टि, उनकी मुस्कान — इन सबसे आत्मा को बहुत कुछ कह जाने वाला अनुभव होता रहा।

🌼 बुद्ध की करुणा से जुड़ाव

जीवन के एक मोड़ पर मुझे भगवान गौतम बुद्ध की शिक्षाओं से गहराई से जुड़ने का अवसर मिला। वह दिन आज भी स्मृति में ताज़ा है — जब पहली बार धम्मपद की एक पंक्ति ने जैसे मन को चीरते हुए झकझोर दिया:

“मन ही सब कुछ है। जो तुम सोचते हो, वही तुम बनते हो।”

उस दिन से लेकर आज तक, बुद्ध की करुणा, उनकी तटस्थ दृष्टि, और उनके द्वारा बताए गए अष्टांगिक मार्ग ने मुझे एक नई दिशा दी। ध्यान-साधना मेरे जीवन का केंद्र बन गई। हर दिन कुछ देर एकांत में बैठकर मैं अपने ही भीतर उतरता हूँ, और वहाँ जो शांति मिलती है, वह किसी भी बाहरी सुख से परे है।

📖 ग्रंथों से मित्रता

मैंने अनेक धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथों का अध्ययन किया — धम्मपद, जटकों की कथाएँ, उपनिषद, भगवद गीता, और कई संत साहित्य जैसे कबीर, रैदास, तुलसी आदि के विचार। इन सबमें एक ही बात बार-बार सामने आती रही — आत्मा को जानो, मन को शुद्ध करो, और करुणा का अभ्यास करो।

यह ब्लॉग मेरी उसी यात्रा का विस्तार है।


✍️ इस ब्लॉग के बारे में

इस ब्लॉग पर मैं वही लिखता हूँ जो मैंने अनुभव किया है, जो मैंने ध्यान में जाना है, और जो मैंने ग्रंथों में पढ़ा है। मेरा उद्देश्य न तो किसी को प्रभावित करना है, न ही कोई अनुयायी बनाना — बल्कि केवल इतना कि यदि मेरी यह लेखनी किसी एक व्यक्ति को भी अपनी आत्मा की ओर लौटने की प्रेरणा दे सके, तो यह लेखन सार्थक हो जाएगा।

यह ब्लॉग एक दर्पण है — जो आपको अपने भीतर झाँकने का निमंत्रण देता है।


🌱 आपसे विनम्र निवेदन

यदि आप भी ध्यान, आत्मचिंतन, पुनर्जन्म, कर्म, मुक्ति और बौद्ध धर्म की मूल शिक्षाओं में रुचि रखते हैं, तो इस यात्रा में आप मेरे सहयात्री बन सकते हैं। आप चाहें तो कमेंट्स या ईमेल के माध्यम से अपने अनुभव भी साझा कर सकते हैं। मैं स्वयं भी एक शिष्य हूँ — और हर पाठक से कुछ न कुछ सीखने का मन हमेशा बना रहता है।

🙏 बुद्धं शरणं गच्छामि
🙏 धम्मं शरणं गच्छामि
🙏 संघं शरणं गच्छामि

Comments