भगवान बुद्ध और उनका धम्म आत्मशुद्धि से सामाजिक जागरूकता तक भूमिका भगवान बुद्ध की शिक्षाएँ केवल आत्मज्ञान या ध्यान-साधना तक सीमित नहीं थीं। उनका धम्म (धर्म) एक ऐसी जीवन पद्धति है जो व्यक्ति को आत्मिक शुद्धि के साथ-साथ सामाजिक जिम्मेदारी की ओर भी प्रेरित करता है। बुद्ध ने कभी अंधविश्वास, रहस्यवाद या परंपरा के आधार पर सत्य को स्वीकारने की बात नहीं कही। उनका आग्रह था कि हर बात को अनुभव, परीक्षण और तर्क की कसौटी पर कसा जाए। धम्म का सही अर्थ धम्म कोई रहस्य या केवल गूढ़ साधना नहीं है, बल्कि एक व्यावहारिक और सार्वभौमिक जीवन पद्धति है। कुछ लोग बुद्ध के धम्म को केवल समाधि और ध्यान से जोड़ते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि धम्म को कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में अनुभव कर सकता है। बुद्ध ने धम्म को तीन स्तरों में समझाया: अधम्म (Not-Dhamma) – हिंसा, झूठ, वासना, द्वेष जैसे नकारात्मक कर्म। धम्म (Shuddh Dhamma) – नैतिक आचरण और शुद्ध जीवन। सद्धम्म (Saddhamma) – परिपक्व, जागरूक और निर्मल जीवन शैली। तीन प्रकार की पवित्रताएँ जीवन को पवित्र और निर्मल बनाने के लिए बुद्ध ने तीन प्रमु...
तीनों धर्मों में राम की कहानी: हिंदू, जैन और बौद्ध दृष्टिकोण राम की कहानी भारतीय संस्कृति का एक ऐसा महाकाव्य है, जो तीन प्रमुख धर्मों हिंदू, जैन, और बौद्ध में अपनी विशेष जगह रखता है। प्रत्येक धर्म ने रामायण की कहानी को अपने दृष्टिकोण और मूल्यों के अनुसार ढाला है। हालांकि इनकी मूल कथा एक समान है, लेकिन उनके नायक, घटनाएं, और उनके अंतर्कथाएं हर धर्म के दर्शन और समाजशास्त्रीय संरचना को प्रतिबिंबित करती हैं। रामायण का धार्मिक संदर्भ: तीनों धर्मों में कथा का मूल 1. हिंदू धर्म में राम ग्रंथ: वाल्मीकि रामायण लेखक: महर्षि वाल्मीकि काल: लगभग 5वीं से 4वीं शताब्दी ईसा पूर्व यह ग्रंथ हिंदू धर्म में भगवान राम को भगवान विष्णु के सातवें अवतार के रूप में प्रस्तुत करता है। इसमें धर्म, मर्यादा, और कर्तव्य का आदर्श है। 2. जैन धर्म में राम ग्रंथ: पउमचरियम (पद्मचरित्र) लेखक: आचार्य विमलसूरि काल: लगभग 3री शताब्दी यह ग्रंथ राम को पद्म के रूप में प्रस्तुत करता है, जो करुणामय और अहिंसक जीवन जीते हैं। उनका युद्ध में प्रत्यक्ष हिस्सा नहीं होता, लेकिन उनके भाई लक्ष्मण (बलराम) संघर्ष का नेतृत्व करते हैं...