भगवान बुद्ध और उनका धम्म आत्मशुद्धि से सामाजिक जागरूकता तक भूमिका भगवान बुद्ध की शिक्षाएँ केवल आत्मज्ञान या ध्यान-साधना तक सीमित नहीं थीं। उनका धम्म (धर्म) एक ऐसी जीवन पद्धति है जो व्यक्ति को आत्मिक शुद्धि के साथ-साथ सामाजिक जिम्मेदारी की ओर भी प्रेरित करता है। बुद्ध ने कभी अंधविश्वास, रहस्यवाद या परंपरा के आधार पर सत्य को स्वीकारने की बात नहीं कही। उनका आग्रह था कि हर बात को अनुभव, परीक्षण और तर्क की कसौटी पर कसा जाए। धम्म का सही अर्थ धम्म कोई रहस्य या केवल गूढ़ साधना नहीं है, बल्कि एक व्यावहारिक और सार्वभौमिक जीवन पद्धति है। कुछ लोग बुद्ध के धम्म को केवल समाधि और ध्यान से जोड़ते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि धम्म को कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में अनुभव कर सकता है। बुद्ध ने धम्म को तीन स्तरों में समझाया: अधम्म (Not-Dhamma) – हिंसा, झूठ, वासना, द्वेष जैसे नकारात्मक कर्म। धम्म (Shuddh Dhamma) – नैतिक आचरण और शुद्ध जीवन। सद्धम्म (Saddhamma) – परिपक्व, जागरूक और निर्मल जीवन शैली। तीन प्रकार की पवित्रताएँ जीवन को पवित्र और निर्मल बनाने के लिए बुद्ध ने तीन प्रमु...
बुद्ध बताते हैं कि वास्तविक भिक्षु या संत कौन है
1. इस जीवन में जिसने पाप और पुण्य दोनों का परित्याग कर दिया है, जो पवित्र है और विवेकयुक्त होकर रहता है, वही वास्तविक भिक्षु कहलाता है।
2. झूठ बोलने वाला अनुशासनहीन व्यक्ति सिर्फ मुंडन से तपस्वी नहीं बन सकता। जो कामना और लोभ से भरा हुआ है, वह सच्चा तपस्वी नहीं हो सकता।
3. जिसने छोटी-बड़ी सभी बुराइयों का दमन कर लिया है, वही सच्चा तपस्वी है, क्योंकि उसने सभी बुराइयों पर विजय प्राप्त की है।
4. जो आलसी और अज्ञानी है, वह केवल चुप रहकर साधु नहीं बनता। जो व्यक्ति विद्वान है और उत्तम को स्वीकारता है, वही सच्चा साधु है।
भिक्षु को उपदेश
1. भिक्षु, जब तक तूने तृष्णाओं को समाप्त नहीं किया है, तब तक संतुष्ट मत हो। सबसे बड़ा धर्म पाप-भावना की समाप्ति है।
2. अपने प्रकाश को विकसित कर और अपने जीवन को धर्म और धार्मिक अनुशासन में लगाओ। गुरुओं और बड़ों के प्रति सम्मानपूर्ण और सेवापरायण बनो।
3. जो श्रमण स्त्री को स्त्री की दृष्टि से देखता है, उसने अपनी प्रतिज्ञा भंग कर दी है और वह बुद्ध का शिष्य नहीं रह जाता।
4. यदि स्त्री के साथ बातचीत करनी ही पड़े, तो स्वच्छ हृदय से करो और विचार करो, "मैं इस पापपूर्ण संसार में कमल की उस निष्कलंक पंखुड़ी के समान जीवन जीऊंगा।"
संयम का महत्व
1. शरीर का संयम अच्छा है; वाणी का संयम अच्छा है; मन का संयम अच्छा है। जो सभी में संयम करता है, वह दुखों से मुक्त हो जाता है।
2. वह व्यक्ति, जिसे ध्यान में आनंद आता है और जो एकाकी, आत्मतृप्त है, वही सच्चा भिक्षु कहलाता है।
3. जिसका शरीर और मन "मैं और मेरे" के भाव से मुक्त है, वही वास्तव में भिक्षु है।
4. जो एकांत में वास करता है और धर्म को स्पष्ट रूप से देखता है, वह मनुष्यों से परे के आनंद का उपभोग करता है।
मार्गदर्शन और सिखावन
1. अपने मार्ग में अपनत्वपूर्ण और व्यवहार में परिमार्जित बनो, आनंद से भरकर दुख को समाप्त करो।
2. जैसे बादलों से मुक्त चंद्रमा आलोकित होता है, वैसे ही भिक्षु, बुद्ध के उपदेशों में समर्पित होकर संसार को आलोकित करते हैं।
3. कुश को गलत ढंग से पकड़ने से हाथ कट जाते हैं, उसी प्रकार अगर वीतरागी जीवन गलत ढंग से जिया जाए, तो वह नरक में ले जाता है।
निष्कर्ष
बुद्ध के इन उपदेशों से हमें संयम, आत्म-जागरूकता, और सच्चे साधु की पहचान के महत्वपूर्ण पाठ मिलते हैं। यह सीख हमें जीवन में एक संतुलित, शांतिपूर्ण और अनुशासित मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।
यहां भगवान बुद्ध की वाणी हमें बताती है कि सच्ची शरण हमारे अपने आत्मसंयम और अनुशासन में है।
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