नैमिषारण्य तीर्थ का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व और धर्मचक्र का वास्तविक अर्थ प्रस्तावना नैमिषारण्य (चक्र तीर्थ) उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले में स्थित एक प्राचीन तीर्थ है। ऋषियों की तपोभूमि, ज्ञान एवं साधना का केंद्र, और बहुधार्मिक परंपराओं—हिंदू, बौद्ध, जैन—में किसी न किसी रूप में इसका उल्लेख मिलता है। प्रश्न यह है कि क्या यह केवल आस्था का स्थल है, या इसके पीछे कोई गहन दार्शनिक संकेत भी निहित है? “नैमिषारण्य” को तीन भागों में समझा जा सकता है—‘नै’ (क्षण/क्षणिक), ‘मिष’ (दृष्टि), ‘अरण्य’ (वन)। भावार्थ है—ऐसा वन जहाँ क्षणभर में आत्मदृष्टि या आत्मबोध संभव हो। प्राचीन ग्रंथों में नैमिषारण्य ऋग्वेद, रामायण, महाभारत और अनेकों पुराणों में इस क्षेत्र का विस्तार से वर्णन है। महाभारत परंपरा में इसे वह स्थान माना गया जहाँ वेदव्यास ने पुराणकथा-वाचन की परंपरा को स्थिर किया। पांडवों के वनवास प्रसंगों में यहाँ ध्यान-तप का उल्लेख मिलता है। रामायण में शत्रुघ्न द्वारा लवणासुर-वध और इसके धार्मिक केंद्र के रूप में प्रतिष्ठा का वर्णन है। स्कन्द पुराण इसे “तीर्थराज” कहता है; शिव पुराण में शिव-प...
बुराई, अच्छाई और कष्ट
मेरे मित्रो! हत्या बुरी है; चोरी बुरी है; कामवासना से युक्त होना बुरा है; झूठ बोलना बुरा है; निन्दा करना बुरा है; गाली देना बुरा है; मिथ्या कथन बुरा है; ईर्ष्या बुरी है; घृणा बुरी है; मिथ्या मत का पालन करना बुरा है; मित्रो! ये सारी वस्तुएँ बुरी है।
और मेरे मित्रो! बुराई की जड़ क्या है?
इच्छा ही बुराई की जड़ है; द्वेष ही बुराई की जड़ है; भ्रम ही बुराई की जड़ है; ये सभी चीजें बुराई की जड़ हैं।
बुरे कार्य को अधूरा छोड़ देना उत्तम है, क्योंकि एक कुकर्म इस जन्म के बाद व्यक्ति को पीड़ित करता है। सत्कर्म को पूरा किया जाना अच्छा है, जिसका कर लेने पर बाद में पछतावा नहीं करना पड़ता।
बुराई के बारे में हल्के हंसी से सोचते हुए यह मत कहो कि – "यह मेरे समीप तक नहीं आएगी।"
एक घड़ा भी बूँद-बूँद से भर जाता है। इसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति भी थोड़ा-थोड़ा करके खुद को बुराई से भर लेता है।
जिस प्रकार कम रखें और अधिक सम्पत्ति से युक्त व्यापारी खतरनाक रास्ते पर से जाना छोड़ देता है, या जिस प्रकार जीने की इच्छा रखनेवाला व्यक्ति विष से बचता है, उसी प्रकार व्यक्ति को बुराई से बचना चाहिए।
प्राणियों के सारे कर्म दस बुराइयों से दूषित हो जाते हैं और यदि इन दस बुराइयों से दूर रहा जाए, तो वे अच्छे बन जाते हैं।
इसमें तीन बुराइयाँ शरीर की है, चार जीभ की और तीन मन की।
शरीर की बुराइयाँ – हत्या, चोरी और व्यभिचार।
झूठ बोलना, निन्दा करना, गाली देना और वकवाद करना जीभ की बुराइयाँ हैं; लालच, द्वेष और दृष्टि मन की बुराइयाँ हैं।
मैं तुम्हें दस बुराइयों से बचने की सीख देता हूँ:
1. हत्या मत करो, बल्कि जीवन का सम्मान करो।
2. चोरी मत करो, न लूटपाट ही करो, परन्तु प्रत्येक व्यक्ति को उसके परिश्रम से प्राप्त फल का स्वामी बनने में सहायता दो।
3. अपवित्रता से दूर रहो तथा ब्रह्मचर्य से पूर्ण जीवन व्यतीत करो।
4. झूठ मत बोलो; सत्यवादी बनो। बिना भय किए, स्नेहपूर्ण हृदय से, विवेक के साथ सच बोलो।
5. बुरी खबरों का आलिंगन मत करो और न ही उन्हें फैलाओ। छिद्रान्वेषण मत करो, बल्कि अपने साथियों के शुभ पक्ष का अवलोकन करो, ताकि तुम निशापूर्वक उनकी रक्षा कर सको।
6. शपथ न लो, पर चातुर्य और मर्यादा के साथ बोलो।
7. बकवाद में समय न गँवाओ, पर काम से लगे रहो या चुप रहो।
8. लालच न करो और न द्वेष ही, बल्कि दूसरे लोगों के सौभाग्य पर हर्षित होओ।
9. अपने हृदय को ईर्ष्या से मुक्त करो और अपने शत्रुओं के प्रति भी द्वेष-भाव न रखो, बल्कि समस्त प्राणियों को स्नेहभाव के साथ अपनाओ।
10. अपने मन को अज्ञान से मुक्त करो और सत्य को सीखने के लिए जिज्ञासु बनो। विशेषकर यह एक बात आवश्यक है, अन्यथा तुम नास्तिकता या भूल के शिकार हो सकते हो।
यदि कोई व्यक्ति पाप करता है, तो उसे पुनः पाप न करने दो; उसे पाप में आनन्द न लेने दो; बुराई का परिणाम पीड़ा होती है।
मनुष्य प्रेम से क्रोध को जीते; पुण्य के द्वारा पाप को हराए; औदार्य से लोभी को पराजित करे तथा सच्चाई से झूठ को जीते।
यह पाठ हमें अच्छाई, बुराई और कष्ट के विषय में गहराई से सोचने और उन्हें पहचानने की प्रेरणा देता है। #

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