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भगवान बुद्ध और उनका धम्म आत्मशुद्धि से सामाजिक जागरूकता तक

  भगवान बुद्ध और उनका धम्म आत्मशुद्धि से सामाजिक जागरूकता तक भूमिका भगवान बुद्ध की शिक्षाएँ केवल आत्मज्ञान या ध्यान-साधना तक सीमित नहीं थीं। उनका धम्म (धर्म) एक ऐसी जीवन पद्धति है जो व्यक्ति को आत्मिक शुद्धि के साथ-साथ सामाजिक जिम्मेदारी की ओर भी प्रेरित करता है। बुद्ध ने कभी अंधविश्वास, रहस्यवाद या परंपरा के आधार पर सत्य को स्वीकारने की बात नहीं कही। उनका आग्रह था कि हर बात को अनुभव, परीक्षण और तर्क की कसौटी पर कसा जाए। धम्म का सही अर्थ धम्म कोई रहस्य या केवल गूढ़ साधना नहीं है, बल्कि एक व्यावहारिक और सार्वभौमिक जीवन पद्धति है। कुछ लोग बुद्ध के धम्म को केवल समाधि और ध्यान से जोड़ते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि धम्म को कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में अनुभव कर सकता है। बुद्ध ने धम्म को तीन स्तरों में समझाया: अधम्म (Not-Dhamma) – हिंसा, झूठ, वासना, द्वेष जैसे नकारात्मक कर्म। धम्म (Shuddh Dhamma) – नैतिक आचरण और शुद्ध जीवन। सद्धम्म (Saddhamma) – परिपक्व, जागरूक और निर्मल जीवन शैली। तीन प्रकार की पवित्रताएँ जीवन को पवित्र और निर्मल बनाने के लिए बुद्ध ने तीन प्रमु...

बुराई, अच्छाई और कष्ट

 बुराई, अच्छाई और कष्ट

बुद्ध ने कहा – मेरे मित्रो! बुराई क्या है?
मेरे मित्रो! हत्या बुरी है; चोरी बुरी है; कामवासना से युक्त होना बुरा है; झूठ बोलना बुरा है; निन्दा करना बुरा है; गाली देना बुरा है; मिथ्या कथन बुरा है; ईर्ष्या बुरी है; घृणा बुरी है; मिथ्या मत का पालन करना बुरा है; मित्रो! ये सारी वस्तुएँ बुरी है।



और मेरे मित्रो! बुराई की जड़ क्या है?
इच्छा ही बुराई की जड़ है; द्वेष ही बुराई की जड़ है; भ्रम ही बुराई की जड़ है; ये सभी चीजें बुराई की जड़ हैं।
बुरे कार्य को अधूरा छोड़ देना उत्तम है, क्योंकि एक कुकर्म इस जन्म के बाद व्यक्ति को पीड़ित करता है। सत्कर्म को पूरा किया जाना अच्छा है, जिसका कर लेने पर बाद में पछतावा नहीं करना पड़ता।
बुराई के बारे में हल्के हंसी से सोचते हुए यह मत कहो कि – "यह मेरे समीप तक नहीं आएगी।"
एक घड़ा भी बूँद-बूँद से भर जाता है। इसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति भी थोड़ा-थोड़ा करके खुद को बुराई से भर लेता है।
जिस प्रकार कम रखें और अधिक सम्पत्ति से युक्त व्यापारी खतरनाक रास्ते पर से जाना छोड़ देता है, या जिस प्रकार जीने की इच्छा रखनेवाला व्यक्ति विष से बचता है, उसी प्रकार व्यक्ति को बुराई से बचना चाहिए।
प्राणियों के सारे कर्म दस बुराइयों से दूषित हो जाते हैं और यदि इन दस बुराइयों से दूर रहा जाए, तो वे अच्छे बन जाते हैं।
इसमें तीन बुराइयाँ शरीर की है, चार जीभ की और तीन मन की।
शरीर की बुराइयाँ – हत्या, चोरी और व्यभिचार।
झूठ बोलना, निन्दा करना, गाली देना और वकवाद करना जीभ की बुराइयाँ हैं; लालच, द्वेष और दृष्टि मन की बुराइयाँ हैं।
मैं तुम्हें दस बुराइयों से बचने की सीख देता हूँ:
1. हत्या मत करो, बल्कि जीवन का सम्मान करो।
2. चोरी मत करो, न लूटपाट ही करो, परन्तु प्रत्येक व्यक्ति को उसके परिश्रम से प्राप्त फल का स्वामी बनने में सहायता दो।
3. अपवित्रता से दूर रहो तथा ब्रह्मचर्य से पूर्ण जीवन व्यतीत करो।
4. झूठ मत बोलो; सत्यवादी बनो। बिना भय किए, स्नेहपूर्ण हृदय से, विवेक के साथ सच बोलो।
5. बुरी खबरों का आलिंगन मत करो और न ही उन्हें फैलाओ। छिद्रान्वेषण मत करो, बल्कि अपने साथियों के शुभ पक्ष का अवलोकन करो, ताकि तुम निशापूर्वक उनकी रक्षा कर सको।
6. शपथ न लो, पर चातुर्य और मर्यादा के साथ बोलो।
7. बकवाद में समय न गँवाओ, पर काम से लगे रहो या चुप रहो।
8. लालच न करो और न द्वेष ही, बल्कि दूसरे लोगों के सौभाग्य पर हर्षित होओ।
9. अपने हृदय को ईर्ष्या से मुक्त करो और अपने शत्रुओं के प्रति भी द्वेष-भाव न रखो, बल्कि समस्त प्राणियों को स्नेहभाव के साथ अपनाओ।
10. अपने मन को अज्ञान से मुक्त करो और सत्य को सीखने के लिए जिज्ञासु बनो। विशेषकर यह एक बात आवश्यक है, अन्यथा तुम नास्तिकता या भूल के शिकार हो सकते हो।
यदि कोई व्यक्ति पाप करता है, तो उसे पुनः पाप न करने दो; उसे पाप में आनन्द न लेने दो; बुराई का परिणाम पीड़ा होती है।
मनुष्य प्रेम से क्रोध को जीते; पुण्य के द्वारा पाप को हराए; औदार्य से लोभी को पराजित करे तथा सच्चाई से झूठ को जीते।
यह पाठ हमें अच्छाई, बुराई और कष्ट के विषय में गहराई से सोचने और उन्हें पहचानने की प्रेरणा देता है। #

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