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Showing posts from September, 2025

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भगवान बुद्ध और उनका धम्म आत्मशुद्धि से सामाजिक जागरूकता तक

  भगवान बुद्ध और उनका धम्म आत्मशुद्धि से सामाजिक जागरूकता तक भूमिका भगवान बुद्ध की शिक्षाएँ केवल आत्मज्ञान या ध्यान-साधना तक सीमित नहीं थीं। उनका धम्म (धर्म) एक ऐसी जीवन पद्धति है जो व्यक्ति को आत्मिक शुद्धि के साथ-साथ सामाजिक जिम्मेदारी की ओर भी प्रेरित करता है। बुद्ध ने कभी अंधविश्वास, रहस्यवाद या परंपरा के आधार पर सत्य को स्वीकारने की बात नहीं कही। उनका आग्रह था कि हर बात को अनुभव, परीक्षण और तर्क की कसौटी पर कसा जाए। धम्म का सही अर्थ धम्म कोई रहस्य या केवल गूढ़ साधना नहीं है, बल्कि एक व्यावहारिक और सार्वभौमिक जीवन पद्धति है। कुछ लोग बुद्ध के धम्म को केवल समाधि और ध्यान से जोड़ते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि धम्म को कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में अनुभव कर सकता है। बुद्ध ने धम्म को तीन स्तरों में समझाया: अधम्म (Not-Dhamma) – हिंसा, झूठ, वासना, द्वेष जैसे नकारात्मक कर्म। धम्म (Shuddh Dhamma) – नैतिक आचरण और शुद्ध जीवन। सद्धम्म (Saddhamma) – परिपक्व, जागरूक और निर्मल जीवन शैली। तीन प्रकार की पवित्रताएँ जीवन को पवित्र और निर्मल बनाने के लिए बुद्ध ने तीन प्रमु...

भगवान बुद्ध और उनका धम्म आत्मशुद्धि से सामाजिक जागरूकता तक

  भगवान बुद्ध और उनका धम्म आत्मशुद्धि से सामाजिक जागरूकता तक भूमिका भगवान बुद्ध की शिक्षाएँ केवल आत्मज्ञान या ध्यान-साधना तक सीमित नहीं थीं। उनका धम्म (धर्म) एक ऐसी जीवन पद्धति है जो व्यक्ति को आत्मिक शुद्धि के साथ-साथ सामाजिक जिम्मेदारी की ओर भी प्रेरित करता है। बुद्ध ने कभी अंधविश्वास, रहस्यवाद या परंपरा के आधार पर सत्य को स्वीकारने की बात नहीं कही। उनका आग्रह था कि हर बात को अनुभव, परीक्षण और तर्क की कसौटी पर कसा जाए। धम्म का सही अर्थ धम्म कोई रहस्य या केवल गूढ़ साधना नहीं है, बल्कि एक व्यावहारिक और सार्वभौमिक जीवन पद्धति है। कुछ लोग बुद्ध के धम्म को केवल समाधि और ध्यान से जोड़ते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि धम्म को कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में अनुभव कर सकता है। बुद्ध ने धम्म को तीन स्तरों में समझाया: अधम्म (Not-Dhamma) – हिंसा, झूठ, वासना, द्वेष जैसे नकारात्मक कर्म। धम्म (Shuddh Dhamma) – नैतिक आचरण और शुद्ध जीवन। सद्धम्म (Saddhamma) – परिपक्व, जागरूक और निर्मल जीवन शैली। तीन प्रकार की पवित्रताएँ जीवन को पवित्र और निर्मल बनाने के लिए बुद्ध ने तीन प्रमु...

Gautama Buddha’s Severe Austerities and the Discovery of the Middle Path | Journey to Enlightenment

  Gautama Buddha’s Severe Austerities and the Discovery of the Middle Path: A Journey to Enlightenment One of the most important events in the life of Gautama Buddha was his period of severe austerities followed by the discovery of the Middle Path. This transformation was not just the result of his personal experiences but became one of the greatest journeys of self-discovery in human history. 1. Renunciation and the Search for Truth Prince Siddhartha Gautama was born into luxury, but worldly pleasures never satisfied him. When he witnessed the Four Sights —old age, sickness, death, and the serenity of an ascetic—deep questions stirred in his heart: Is there a way to escape death? Is life nothing but suffering and pain? Is there a path to lasting peace and happiness? Seeking answers, Siddhartha left his family and palace at the age of 29 and became a wandering ascetic. He first studied under two well-known teachers: Alara Kalama – who taught him advanced medita...

गौतम बुद्ध की कठोर तपस्या और मध्यम मार्ग की खोज: आत्मज्ञान की यात्रा

  गौतम बुद्ध की कठोर तपस्या और मध्यम मार्ग की खोज: आत्मज्ञान की यात्रा गौतम बुद्ध के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक थी उनकी कठोर तपस्या और उसके बाद मध्यम मार्ग की खोज। यह परिवर्तन केवल उनके व्यक्तिगत अनुभवों का परिणाम नहीं था, बल्कि यह मानव इतिहास की सबसे महान आत्म-खोज यात्राओं में से एक बन गया। 1. गृहत्याग और आत्मज्ञान की खोज सिद्धार्थ गौतम एक राजकुमार थे, लेकिन सांसारिक विलासिता उन्हें कभी संतोष नहीं दे सकी। उन्होंने जीवन के चार महादर्शन देखे— बुढ़ापा, बीमारी, मृत्यु, और एक संन्यासी की शांति, जिसने उनके भीतर गहरे प्रश्न उत्पन्न कर दिए: क्या मृत्यु से बचने का कोई तरीका है? क्या जीवन केवल दुख और पीड़ा से भरा हुआ है? क्या कोई ऐसा मार्ग है जिससे स्थायी सुख और शांति प्राप्त की जा सके? इन प्रश्नों के उत्तर की खोज में उन्होंने 29 वर्ष की आयु में अपना परिवार और राजमहल छोड़ दिया और संन्यासी बन गए। उन्होंने सबसे पहले दो प्रसिद्ध गुरुओं से शिक्षा ग्रहण की: आलार कालाम – जिन्होंने उन्हें ध्यान और समाधि की शिक्षा दी। उद्दक रामपुत्त – जिन्होंने उन्हें आत्मा और...

Steve Jobs and Buddhism: A Journey That Began with Questions

  Steve Jobs and Buddhism: A Journey That Began with Questions Childhood Curiosity and the First Rebellion From an early age, Steve Jobs questioned everything around him. He attended church with his parents, but at the age of 13 his worldview took a dramatic turn. At that time, Life magazine published a photo of starving children in the Biafra region of Africa. The image shook Jobs to his core. During Sunday school, he asked his pastor: “Does God know what I’m going to do before I lift my finger?” The pastor replied, “Yes, God knows everything.” Jobs then asked, “So does God also know about these children? Does He know why they are starving?” When he received no satisfying answer, Jobs stopped going to church. This became his first act of rebellion—turning away from blind faith and tradition, and moving toward truth and personal experience. Encounter with Buddhism Jobs’ restless search eventually led him to Buddhism, particularly Zen Buddhism . Here he found a path wher...

स्टीव जॉब्स और बौद्ध धर्म: सवालों से शुरू हुई यात्रा

स्टीव जॉब्स और बौद्ध धर्म: सवालों से शुरू हुई यात्रा स्टीव जॉब्स बचपन से ही जिज्ञासु थे और हर चीज़ पर सवाल उठाते थे। वे अपने माता-पिता के साथ चर्च जाया करते थे, लेकिन 13 साल की उम्र में उनकी सोच ने निर्णायक मोड़ लिया। उस समय Life पत्रिका में अफ्रीका के बियाफ्रा क्षेत्र के भूख से मरते बच्चों की तस्वीर छपी। इस दृश्य ने जॉब्स को अंदर तक हिला दिया। उन्होंने रविवार स्कूल में पादरी से सवाल किया: “क्या भगवान जानते हैं कि अगर मैं अपनी उंगली उठाऊँ तो मैं क्या करने वाला हूँ?” पादरी ने जवाब दिया, “हाँ, भगवान सब जानते हैं।” फिर जॉब्स ने पूछा, “तो इन बच्चों का क्या? भगवान यह भी जानते हैं कि ये भूख से क्यों मर रहे हैं?” जब उन्हें संतोषजनक उत्तर नहीं मिला, तो उन्होंने चर्च जाना छोड़ दिया। यह उनके जीवन का पहला बड़ा विद्रोह था—अंधविश्वास और परंपरा के बजाय सच्चाई और अनुभव की खोज। बाद में जॉब्स ने बौद्ध धर्म, खासकर ज़ेन बौद्ध धर्म, का गहन अध्ययन किया। उन्हें इसमें एक ऐसा रास्ता मिला जहाँ ध्यान (meditation), अनुभव (experience) और आत्मचिंतन (self-reflection) को महत्व दिया जाता है, न कि केवल धार...

Naimisharanya: Historical and Spiritual Significance and the True Meaning of the Dharma Chakra

  Naimisharanya: Historical and Spiritual Significance and the True Meaning of the Dharma Chakra Introduction Naimisharanya, also known as Chakra Tirtha, is a sacred site located in Sitapur district of Uttar Pradesh. Traditionally regarded as an ancient land of sages, penance, and knowledge, it is counted among India’s oldest pilgrimage centers. Its significance extends beyond Hinduism—it also finds mention in Buddhist and Jain traditions. The very word Naimisharanya can be divided into three parts: Nai = momentary Misha = vision or sight Aranya = forest Thus, its deeper meaning is “a forest where self-realization can be attained in a single moment.” Naimisharanya in Ancient Texts Naimisharanya is frequently mentioned in the Rigveda, Ramayana, Mahabharata, and several Puranas. Mahabharata: It is said to be the place where Sage Vedavyasa composed the 18 Puranas. The Pandavas are also described as having performed penance here during their exile. Ramayana...

नैमिषारण्य तीर्थ का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व और धर्मचक्र का वास्तविक अर्थ

  नैमिषारण्य तीर्थ का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व और धर्मचक्र का वास्तविक अर्थ प्रस्तावना नैमिषारण्य (चक्र तीर्थ) उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले में स्थित एक प्राचीन तीर्थ है। ऋषियों की तपोभूमि, ज्ञान एवं साधना का केंद्र, और बहुधार्मिक परंपराओं—हिंदू, बौद्ध, जैन—में किसी न किसी रूप में इसका उल्लेख मिलता है। प्रश्न यह है कि क्या यह केवल आस्था का स्थल है, या इसके पीछे कोई गहन दार्शनिक संकेत भी निहित है? “नैमिषारण्य” को तीन भागों में समझा जा सकता है—‘नै’ (क्षण/क्षणिक), ‘मिष’ (दृष्टि), ‘अरण्य’ (वन)। भावार्थ है—ऐसा वन जहाँ क्षणभर में आत्मदृष्टि या आत्मबोध संभव हो। प्राचीन ग्रंथों में नैमिषारण्य ऋग्वेद, रामायण, महाभारत और अनेकों पुराणों में इस क्षेत्र का विस्तार से वर्णन है। महाभारत परंपरा में इसे वह स्थान माना गया जहाँ वेदव्यास ने पुराणकथा-वाचन की परंपरा को स्थिर किया। पांडवों के वनवास प्रसंगों में यहाँ ध्यान-तप का उल्लेख मिलता है। रामायण में शत्रुघ्न द्वारा लवणासुर-वध और इसके धार्मिक केंद्र के रूप में प्रतिष्ठा का वर्णन है। स्कन्द पुराण इसे “तीर्थराज” कहता है; शिव पुराण में शिव-प...

Were Gautam Buddha’s Ideas Influenced by Kapila Muni? Two Great Philosophies, One Profound Dialogue

  Were Gautam Buddha’s Ideas Influenced by Kapila Muni? Two Great Philosophies, One Profound Dialogue Kapila Muni and the Historical Context of Samkhya Philosophy Kapila Muni is regarded as one of the most ancient and rational philosophers of India. He is credited as the founder of Samkhya Philosophy , one of the six classical schools (Shad-Darshanas) of Indian thought. His period is estimated around 1500–1000 BCE. The seeds of Samkhya can be found in the Rigveda and the Upanishads. References to “Samkhya Yoga” are also seen in the Mahabharata (Shanti Parva) and the Bhagavad Gita, suggesting that the system was well-developed before the epic era. Samkhya Philosophy: Reason and Duality Samkhya was the first Indian philosophy to present the universe through a rational and almost scientific lens. It declared that the cosmos is composed of two eternal realities— Purusha (Consciousness) and Prakriti (Material Nature) . Purusha is eternal, passive, and the witness (Sakshi), whi...

गौतम बुद्ध और कपिल मुनि: सांख्य दर्शन और बौद्ध धर्म का संवाद

  क्या गौतम बुद्ध के विचार कपिल मुनि से प्रभावित थे? दो महान दर्शन, एक गूढ़ संवाद कपिल मुनि और सांख्य दर्शन का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य कपिल मुनि भारतीय दर्शन के सबसे प्राचीन और तर्कसंगत दार्शनिकों में से एक माने जाते हैं। वे सांख्य दर्शन के प्रवर्तक थे, जो भारत के षड्दर्शन में प्रमुख स्थान रखता है। उनका कालखंड 1500–1000 ईसा पूर्व माना जाता है। ऋग्वेद और उपनिषदों में सांख्य विचारों के बीज मिलते हैं। महाभारत (शांति पर्व) और भगवद गीता में भी “सांख्य योग” का उल्लेख मिलता है, जो दर्शाता है कि यह विचारधारा महाभारत काल से पहले ही विकसित हो चुकी थी। सांख्य दर्शन: तर्क और द्वैत की परंपरा सांख्य दर्शन ने पहली बार दुनिया को एक तर्कसंगत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया। इस दर्शन के अनुसार ब्रह्मांड दो तत्वों से बना है— पुरुष (चेतना) और प्रकृति (भौतिक जगत) । पुरुष शाश्वत, साक्षी और निष्क्रिय है, जबकि प्रकृति परिवर्तनशील और सृष्टि की मूल आधार है। यही द्वैत दृष्टिकोण बाद के बौद्ध, जैन और योग दर्शन पर भी गहरा प्रभाव डालता है। त्रिगुण सिद्धांत और दुख का कारण सांख्य दर्शन म...